आज के समय में कम उम्र में ही बालों का सफेद होना एक आम बात है। आजकल की दौड़ भाग भरी जिंदगी में हम अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, जिस वजह से हमारे शरीर में कई प्रकार के विकार उत्पन्न होने लगते हैं, जिनमें से बालों का सफेद होना चालू हो जाता है। साथियों इस आर्टिकल के माध्यम में हम सफेद बालों से छुटकारा पाने के तरीको के बारे में विस्तृत जानकारी आपको देंगे तथा यह लेख आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होने वाला है।
आजकल मानो यह एक गंभीर समस्या बनते जा रही है, क्योंकि हर तीसरे या चौथे व्यक्ति के बाल कम समय में अथवा असमय में सफेद होने लगे हैं। आजकल तो यह समस्या 14 साल की बच्चे में भी दिखाई देने लगी है। ज्यादातर इसका निवारण लोग रसायन युक्त पदार्थों का इस्तेमाल कर करते हैं, परंतु यह रसायन हमारे बालों के साथ-साथ हमारे शरीर के लिए भी हानिकारक है, क्योंकि इन रसायनों का इस्तेमाल करने पर हमारे शरीर में इसके दुष्प्रभाव पड़ने लगते हैं तथा हमें अपने घरेलू उपायों का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
आइए जानते हैं बाल सफ़ेद होने के कारण क्या है और कौन-कौन से घरेलू उपाय हैं जो सफेद बालों से छुटकारा दिला सकते है।
सफेद बाल
बाल सफ़ेद होने के कारण-Baal Safed Hone Ke Karan
दोस्तों इसके कई कारण हो सकते हैं जो निम्नलिखित हैं।
बालों का सफेद होना अपने खानपान पर भी निर्भर करता है यदि हम संतुलित आहार नहीं ले रहे हैं तो हमारे बाल सफेद हो सकते हैं। भोजन में हमें आवश्यक सभी प्रकार के तत्वों की पूर्ति करना चाहिए जो लोग खानपान में इन सारी बातों तथा आवश्यक तत्वों का ध्यान नहीं रखते हैं तो इसका असर आपके बालों में दिखाई देता है।
यह भी एक कारण है कि हमारी दैनिक जीवन की गतिविधि जिसके वजह से हम दिन भर अपने कामों में उलझे रहते हैं और नियमित रूप से अपने बालों का तथा शरीर का ध्यान नहीं दे पाते हैं। इस कारणवश इसका असर बालों पर नजर आता है यह एक महत्वपूर्ण समस्या बन जाती है।
जो लोग तनाव में रहते हैं तथा वह बहुत जल्द ही डर तथा घबरा जाते हैं तब यह समस्या उत्पन्न होना चालू हो जाती है।
अनुवांशिकता एक महत्वपूर्ण कारण है जिसके वजह से बाल सफेद होते हैं दोस्तों यदि आपके परिवार या आपके पूर्वजों में यह समस्या चली आ रही है तो आपके भी बाल सफेद होंगे।
जैसे-जैसे पर्यावरण में प्रदूषण का स्तर बढ़ते जा रहा है, वैसे वैसे ही इसका दुष्परिणाम हमारे शरीर पर आ रहा है, परंतु इसका सबसे ज्यादा प्रभाव हमारी त्वचा तथा बालों पर पड़ता है। इस दूषित पर्यावरण से हमारे बाल सफेद होने लगते हैं।
बाजार में रसायन युक्त शैंपू, कंडीशनर, डाई आदि पदार्थ बढ़ रहे हैं। जिनमें बहुत मात्रा में रसायनों का उपयोग होता है जिससे बालों का सफेद होना निश्चित होता है।
बाजार में मौजूद विभिन्न प्रकार के खुशबूदार तेल का भी हम लोग बहुत इस्तेमाल करते हैं इनमें उपस्थित रसायनों की वजह से हमारे बाल सफेद होने लगते हैं।
बाल काले करने के घरेलू उपाय-Baal Kale Karne Ke Gharelu Upay
मेहंदी के पौधे से पत्तियां तोड़ कर उसे पीसकर मेहंदी तैयार करें और अपने बालों में लगाना चाहिए इससे आप सफेद बालों पर बहुत हद तक नियंत्रण पा सकते हैं।
यदि आप अपने खान-पान में कढ़ी के पत्तों का इस्तेमाल करते हैं तो यह आपके लिए फायदेमंद साबित होंगे, यह आपके बालों के लिए लाभदायक होते हैं।
सिर में नारियल के तेल की मालिश करना यह भी तेल की मालिश एक घरेलू उपाय है, करने से तेल बालो की जड़ तक जाता है जिसे बालो को पूरे नुट्रिएंट मिलते है जिसे बाल सफ़ेद नहीं होते है, जिससे हम इस समस्या से निदान पाने में काफी हद तक सफल हो सकते हैं।
सफ़ेद बालो को रोकने के लिए काली मिर्च को पानी के साथ उबालकर अपने बालो में लगाए। इस घोल को 15 से 20 मिनट अपने बालो में लगा कर रखे, फिर उसे ठंडे पानी से धो ले, यह प्रक्रिया सहप्ते में दो बार करे आप देखेंगे की आपके सफ़ेद बाल काफी हद तक काम होंगे है।
चाय पत्ती का पानी यह भी एक घरेलू उपाय है जिसके माध्यम से आप अपने बालों को चमकदार तथा रेशमी बना सकते हैं चाय पत्ती का पानी आप सस्ते में एक या दो बार उपयोग में लाए और 15 से 20 मिनट इसे सूखने के लिए रख दें आप देखेंगे कि आपके सफेद बालों पर काफी हद तक काबू में कर सकते हैं।
चुकंदर का रस यह भी एक घरेलू नुस्खा है इसमें मौजूद प्राकृतिक तत्वों के माध्यम से हम अपने बालों को पोषण प्रदान करते हैं, जिसके वजह से यह हमारे बालों को स्वस्थ बनाकर रखते हैं बालों का स्वस्थ होना ही सफेद बालों को दूर रखने का एक तरीका होता है।
Frequently Asked Questions in Hindi – सामान्य प्रश्न
बालों में तेल कब और कैसे लगाएं?
बालो मे तेल हमेशा रात मे लगाऐ और अगली सुबह धो ले।अपनी उंगलियों को तेल मे डुबोकर बालो के हिस्से कर के सिर पर हल्के हाथो से पूरे सिर पर लगाऐ और थोड़ी देर मसाज करे।
बालो का झड़ना कैसे रोक सकते हैं?
संतुलित आहार, नियमित तेल, बालो की कंडिशनिंग करके और तनाव से दूर रहकर बालो का झड़ना रोक सकते है।
हमारे बॉडी मे बहुत से कोशिकाओं होती है इन्हे सही से काम करने के लिए किसी भी प्रकार की रुकावट नही चाहिए होती है। परंतु व्यक्ति के गलत खान पान के कारण शरीर मे बहुत सी बीमारिया पैदा हो जाती है। बहुत बार व्यक्ति ऑइल की चीजे ज्यादा खाता है जिससे उसके बुरे प्रभाव उसके शरीर पर पड़ते है। ज्यादा ऑइल का खाना शरीर मे कोलेस्ट्रोल की समस्या पैदाकर देता है। कोलेस्ट्रोल की समस्या से मोटापा, सिर दर्द, सांस फूलना, बेचेनी, सिने मे दर्द, हार्ट के बीमारी आदि होने लगती है। जब कोलेस्ट्रोल बढ़ता है तो यह बीमारिया आम तोर पर होना शुरू हो जाती है। इसके लिए व्यक्ति बहुत से उपाय करने लगता है जिससे कोलेस्ट्रोल कम किया जा सके। तो आइये जानते है कोलेस्ट्रोल कैसे कम करें ।
कोलेस्ट्रॉल क्या है?
कोलेस्ट्रोल एक वसा से भरा तरल की तरह होता है, जो हमारे लिवर से पैदा होता है। यह हमारे शरीर की कोशिकाओं की दीवारों, हॉर्मोस को बनाये रखने मे, नर्वस सिस्टम के सुरक्षा कवच के लिए जरूरी होता है। बॉडी मे दो तरह के कोलेस्ट्रोल होते है जैसे एक अच्छा दूसरा बुरा। अच्छा कोलेस्ट्रोल काफी हल्का होता है, बुरा ज्यादा गाढ़ा होता है जो हमारे आर्टरी की दीवारों पर जमा होता है। इससे खून का बहाव रुक जाता है।
कोलेस्ट्रोल कैसे कम करें-Cholesterol Kam Karne Ke Upay In Hindi
कोलेस्ट्रोल को कम करने के लिए हमने नीचे कुछ खाद्य सामाग्री के बारे मे बताया है जिससे व्यक्ति आसानी से अपने बढ़ते हुये कोलेस्ट्रोल को कम कर सकता है। चलिये जानते है कैसे?
ऑलिव ऑयल
कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए ऑलिव ऑयल का उपयोग करना चाहिए क्यूकी इसमे अनसैचुरेटेड फैट कोलेस्ट्रॉल के लेवेल को कम करने के गुण होते है जो कोलेस्ट्रोल को बढ़ाने से रोकते है। यह हमारे शरीर मे ऑर्टरी को मजबूत बनाए रखता है।
ऑलिव ऑयल हमारे हार्ट के लिए भी सही होता है।
ऑलिव ऑयलब्लड प्रेशर व शुगर के लेवेल को बनाए रखता है। ऑलिव ऑयल का लगातार 6 महीने से ज्यादा काम मे लेने से यह आपका 8-10% कोलेस्ट्रोल घटा देता है।
नींबू
नींबू को कोलेस्ट्रोल कम करने का एक अच्छा स्त्रोत माना गया है। इसमे घुलनशील फाइबर होते है जो हमारे पेट के लिए अच्छे होते है।
नींबू
यह हमारे पेट मे कोलेस्ट्रॉल को खून के साथ मिलने से रोकने मे मदद करता है। इसके अंदर पाये जाने वाला विटामिन सी खून की नालियो की सफाई करता है। यह हमारे बड़े हुये कोलेस्ट्रोल को बाहर निकाल देता है। इसके आप खटे फलो को खा सकते है, क्यूकी इनमे एंजाइम्स होते है जो मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया को तेज करते है, जिससे आप कोलेस्ट्रॉल को घाटा सकते है।
सोयाबीन और दालें
कोलेस्ट्रोल को कम करने के लिए व्यक्ति को अंकुरित चीज़ों को खाना चाहिए, इसलिए सोयाबीन और दालें का सेवन करना जरूरी है, क्यूकी अंकुरित अनाज मे खून मे पाये जाने वाले एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को बाहर निकालने मे लिवर की सहायता करता है।
यदि इन चीज़ों को सही से सेवन नही किया जाता है तो यह कोलेस्ट्रॉल बढ़ा भी सकती है।
ओट्स
ओट्स मे मोजूद फाइबर हमारे शरीर मे कोलेस्ट्रॉल को कम करने मे मदद करता है। ओट्स मे बीटा ग्लूकॉन होता है जो हमारी आंत की सफाई करता है।
जिससे हमारी कब्ज की परेशानी दूर हो जाती है। इससे खराब कोलेस्ट्रॉल को ख़त्म कर देता है। यदि इसका लगातार सेवन करते रहने से यह 3 महिनो मे ही 6-7 % कोलेस्ट्रॉल को कम कर देता है।
लहसुन
लहसुन को आम तौर पर बहुत से बीमारी के काम मे भी लिया जाता है। इसमे पाये जाने एंजाइम्स कोलेस्ट्रॉल को घटाने मे मदद करते है।
यदि हम लहसुन का रोजाना सेवन करते है तो लगभग 10-15% तक कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकते है। यह हमारे ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करता है।
कोलेस्ट्रॉल कम करने के उपाय है ड्राई फ्रूट्स
कुछ ड्राई फ्रूट्स जिनमे फाइबर पाये जाते है जैसे पिस्ते, अखरोट और बादाम आदि है। इन ड्राई फ्रूट्स मे ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है जो की कोलेस्ट्रॉल को कम करने मे हमारी मदद करता है।
इसमे फाइबर ज्यादा होता है ,जो हमे पेट के भरे रहने का अहसास करवाते है। इससे फालतू की चीजे खाने से बच सकता है।
फिटकरी के बारे में किसी को बताने की जरूरत नही, ज्यादातर घरों में फिटकरी किसी न किसी काम के लिए रखी ही होती है। कलरलेस और दानेदार दिखने वाले इस पदार्थ को साइंस की भाषा मे साधारण ‘पोटेशियम एल्युमिनियम सल्फेट’ (KAl(SO4)2.12H2O) कहते हैं। सामान्यतया इसे ‘एलम’ (Alums) नाम से जाना जाता है। फिटकरी की तासीर गर्म होती है। इस लेख में हम जानेंगे क्या है फिटकरी के गुण, फिटकरी से नुकसान और इस्तेमाल।
फिटकारी को अंग्रेजी में पोटैश ऐलम या केवल ऐलम भी कहते हैं। यह पोटैशियम सल्फेट और ऐलुमिनियम सल्फेट का साल्ट है। इसके क्रिस्टल अत्यंत सरलता से बनते हैं।
फिटकरी का उपयोग कागज उद्योग, रंगसाजी, छींट की छपाई, पेय जल के शोधन और चमड़ा कमाने में होता है। फिटकरी के अलग अलग रूपो का प्रयोग अलग काम मे लिया जाता है।
पोटैशियम एलम : पोटैशियम एलम को पोटाश एलम और पोटैशियम एलम सल्फेट के नाम से भी जाना जाता है। फिटकरी के इस रूप का इस्तेमाल पानी की गंदगी को साफ करने के लिए किया जाता था पुराने समय मे।
अमोनियम एलम : चिकने सफेद पत्थर की तरह दिखने वाली इस फिटकरी का प्रयोग कॉस्मेटिक या पर्सनल हाइजीन के लिए होता, जैसे आफ्टरशेव लोशन, पसीने की बदबू से छुटकारा और हाथों से जुड़े उत्पाद।
क्रोम एलम : क्रोम एलम भी फिटकरी का एक प्रकार है, यह पूरी तरह से केमिकल बेस्ड है और इसका प्रयोग इस्तेमाल चमड़ा बनाने की प्रक्रिया में किया जाता है।
सोडियम एलम : यह एक इनआर्गेनिक कंपाउंड है, जिसे सोडा एलम भी कहते है। इसका उपयोग बेकिंग पाउडर के निर्माण और फूड एडिटिव के रूप में किया जाता है।
फिटकरी के गुण
फिटकरी में निम्न औषधीय गुण होते है।
एंटीबायोटिक (सूक्ष्म जीवों को नष्ट करने वाला)
एंटी-ट्राइकोमोनस (प्रोटोजोवल इन्फेक्शन को खत्म करने वाला)
एस्ट्रिंजेंट (संकुचन पैदा करने वाला)
एंटीऑक्सीडेंट (मुक्त कणों के प्रभाव को नष्ट करने वाला)
यूँ तो फिटकरी के अनगिनत फायदे आपको हर जगह पढ़ने सुनने को मिलेंगे। लेकिन क्या आप जानते है की फिटकरी से नुकसान कितने है।
तो आगे हम आपको बताएंगे कि फिटकरी के क्या क्या नुकसान होते है। ताकि आप इन बातों का ध्यान रखते हुए फिटकरी का प्रयोग करे।
बहुत से लोग खांसी ज़ुकाम या नकसीर के लिए फिटकरी का प्रयोग करते है। जैसे फिटकरी का चूर्ण बना कर शहद के साथ लेना। लेकिन ध्यान रखे फिटकरी को सूंघने से नाक-गले में जलन, फेफड़ों को प्रभावित करने वाली खांसी, घरघराहट और सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
अगर आप फिटकरी का प्रयोग अपनी त्वचा पर कर रहे है तो ध्यान रखे। फिटकरी घुले हुए पानी से आंखे धोने पर आंखों को नुकसान हो सकता है। इसे लगाने से स्किन और आंखों में जलन व रैशेज भी हो सकते हैं। क्योंकि पोटेशियम ऐलम (potassium alum) त्वचा को कमजोर कर सकता है। इसके कारण ड्राई स्किन, त्वचा में चकते, लाली जैसी समस्याए हो सकती है।
लगाने के अलावा फिटकरी खाने से भी नुकसान हो सकता है। इससे पुरुषों में वीर्य और फ्रक्टोज (semen and fructose) का स्तर प्रभावित हो सकता है। अगर ज्यादा समय तक फिटकरी का सेवन किया जाए कैंसर और अल्जाइमर का खतरा हो सकता है।
अगर आप मुँह के छालों के लिए फिटकरी का प्रयोग कर रहे है, तो लार को गलती से भी ना निगले, बच्चो पर इस तरह का कोई प्रयोग ना करें।
ज़ुओं से मुक्ति के लिए आप फिटकरी पाउडर का उपयोग लगातार ना करें, इससे बाल रूखे और बेजान हो सकते है।
आफ्टर शेव लोशन के तौर पर आप फिटकरी का प्रयोग केवल घर मे करें। अगर आप नाई की दुकान पर जा रहे है तो इससे बचे। क्योंकि नाई एक ही फिटकरी का प्रयोग सबके चेहरे पर करता है जिससे इन्फेक्शन हो सकता है।
कुछ लोग दावा करते है कि रात को फिटकरी को चेहरे पर रगड़ने से रंग गोरा होता है। यदि ऐसा होता तो कॉस्मेटिक का बाजार इतना बड़ा नही होता। रंग गोरा हो ना हो पर लगातार फिटकरी को चेहरे पर रगड़ने से रंग काला जरूर हो सकता है। क्योंकि चेहरे की त्वचा बहुत नाजुक होती है।
योनि में कसावट के लिये भी महिलाएं फिटकरी का प्रयोग करती है, पर हमारा मानना है कि इसके लिए कीगल एक्सरसाइज से बेहतर कुछ नही हौ। इतनी संवेदनशील भाग पर किसी तरह का एक्सपेरिमेंट ना ही किया जाए तो बेहतर होगा।
फिटकरी को रखने का सही तरीका
दानेदार फिटकरी या फिटकरी के टुकड़े को हमेशा सुखाकर रखना चाहिए, इससे वह लंबे समय तक सुरक्षित रह सकती है।
यूज़ करने के बाद इसे किसी एयर टाइट कंटेनर में ही रखे।
फिटकरी पाउडर की बात करें, तो इसे हमेशा एयरटाइट कंटेनर में रखा जाना चाहिए।
उम्मीद है फिटकरी पर लिखा ये आर्टिकल आपको जरूर पसन्द आया होगा, और फिटकरी का उपयोग करने से पहले आप इसके नुकसानों पर एक नजर जरूर डालेंगे। साथ ही इसके प्रयोग से पहले अपनी स्वास्थ्य और शरीरिक स्थिति को देखते हुए डॉक्टर से परामर्श जरूर ले।
उपयोग करने के कारण कोई समस्या होने पर तुरन्त डॉक्टर से सम्पर्क करें, घरेलू उपायों में समय बर्बाद ना करें।
पीतल के बर्तन में रखा पानी पीने से होने वाले फायदे
पीतल तांबा जस्ता को मिलाकर बनाई गई एक मिश्र धातु है। यह धातु पीले रंग की होती हैं। इस धातु के बने बर्तनों का प्रयोग हिंदू धर्म में पूजा पाठ एवं अन्य धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों के आयोजन में किया जाता है। पीतल के बर्तनों का हिंदू धर्म में अत्यधिक प्रयोग किया जाता है एक बच्चे के जन्म होने से लेकर एक वृद्ध व्यक्ति के मृत्यु संस्कार तक में पीतल के बर्तनों की आवश्यकता होती है। भगवान विष्णु ,देवी मां बगलामुखी, मां लक्ष्मी इन सभी की पूजा में पीतल के बर्तन का प्रयोग किया जाता है।
पीतल के बर्तन में पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त होता है
पीतल के बर्तन मे पानी पीने के फायदे अनेक हैं। पीतल की प्रकति गर्म होने के कारण पीतल के बर्तन में रखे हुए पानी से कफ दोष दूर होता है और खांसी जुकाम जैसे विकार नहीं होते।
पीतल के बर्तन में पानी पीने से वायु दोष की बीमारी भी दूर होती है पहले के लोग अपनी क्षमता अनुसार सोना चाँदी तांबा और पीतल के बर्तन प्रयोग करते थे। जिस कारण वह हमेशा स्वस्थ रहते थे। परंतु आजकल धातु के बर्तनों की जगह प्लास्टिक, एलमुनियम, काँच, मेलामाइन आदि ने ले ली है। जिसके कारण काफी सारी बीमारियाँ बढी हैं। इन बर्तनो के प्रयोग से शरीर के अंदर राहु का प्रकोप बढ़ा है। फल स्वरूप कैंसर जैसी बीमारियां शरीर में घर कर रही है।
पीतल के बर्तन न केवल शारीरिक दृष्टि से बल्कि वास्तु के अनुसार हमारे लिए लाभदायक होते हैं। पीतल के बर्तन हमारे लिए आर्थिक समृद्धि लेकर आते हैं।
पीतल के बर्तनों में बना हुआ भोजन अत्यधिक स्वादिष्ट होता है पीतल के बर्तन में बना हुआ भोजन स्वास्थ के लिए लाभदायक होता है पीतल बहुत जल्दी गर्म हो जाता है। जिस कारण गैस की बचत होती है। पीतल के बर्तनों में भोजन पकाने से ऊर्जा की बचत होती हैं। पीतल एक शुद्ध धातु है। पीतल के बर्तन मनुष्य को आरोग्यता एवं तेज़ प्रदान करते हैं। पीतल के बर्तन हमारे लिए बहुत उपयोगी होते हैं। पीतल के बर्तन हमारी आंखों के लिए पीले रंग के होने के कारण टॉनिक का काम करते हैं।
कई बीमारियों से बचाए
पीतल के बर्तन बहुत मजबूत होते हैं शुद्ध पीतल के बर्तन 70% तांबा और 30% जस्ता को मिलाकर बनाए जाते हैं पीतल एक बहुत उपयोगी और कीमती धातु है। जिसे हमारे पूर्वज प्राचीन काल से प्रयोग करते आ रहे हैं। इसलिए नहीं कि वह प्लास्टिक का प्रयोग नही जानते थे या फिर वह बहुत धनवान थे। हमारे पूर्वज पीतल के औषधीय गुणों को जानते थे। आजकल शरीर में कैंसर, टयूमर, एलर्जी जैसी छोटी बड़ी बीमारियां बढ़ती जा रही है। यह सभी बीमारियां हमारे गलत खानपान का परिणाम है।
हम सभी ने समय की बचत के लिए एवं सुंदरता और अपनी सहूलियत के लिए प्लास्टिक के बर्तनों में, कांच के बर्तनों में, नॉन स्टिक के बर्तनों में खाना बनाना खाना परोसना शुरू कर दिया है। इन सब के दुष्परिणाम भी है। जो हम नई-नई बीमारियों के रूप में देख रहे हैं। पीतल के बर्तन आजकल की दौड़ भाग वाली जिंदगी में संभाल पाना बहुत मुश्किल है। यह हम सब जानते हैं तो हर भोजन तो हम पीतल के बर्तनों में नहीं बना सकते। पर कुछ तो हमें अपने स्वास्थ्य के लिए करना ही होगा। इसलिए हमें पीतल के बर्तनों में पानी पीना चाहिए। पीतल के बर्तन में पानी पीना भी उतने ही स्वास्थ्यवर्धक है जितना पीतल के बर्तनों में खाना खाना।
पीतल के बर्तन
आँखों के लिए हैं फायदेमंद
पीतल का पीला रंग हमारी आंखों के लिए लाभदायक होता है यह हमें ऊर्जा प्रदान करता है स्वर्ण की तरह है पीतल भी अति शुभ कार्य होता है भगवान विष्णु को अति प्रिय है। बृहस्पति ग्रह की शांति के लिए पीतल बहुत लाभदायक होता है। पीतल के बर्तनों में पानी पीने से बृहस्पति ग्रह प्रबल होता है।
पानी को करे स्वच्छ
पीतल के बर्तन जल स्वच्छ करने में कारगर पीतल के बर्तन में रखा पानी पीने से पानी के अंदर मौजूद माइक्रो ऑर्गेनाइज्म खत्म हो जाते हैं और पानी स्वच्छ हो जाता है पीतल के लोटे, थाली को गरीब से गरीब परिवार भी अपनी कन्या को विवाह में देता है। उसके पीछे उद्देश्य यही होता है कि घर मैं भोजन पवित्र एवं स्वच्छ हो और साथ ही शुद्ध भी हो हर मांगलिक कार्य में पीतल के कलश या लोटे में जल भरकर रखा जाता है। उसके पीछे उद्देश्य यही होता है कि जल की कभी भी कमी ना हो।
अक्षय तृतीया के दिन सोने-चांदी तो सभी खरीदते हैं परंतु हमारे पूर्वज सदियों से पीतल के लोटे में जल भरकर भगवान के सम्मुख रखते आए हैं। उद्देश्य मात्र यही होता है कि जल की कभी भी कमी ना हो। घर में धनधान्य अन्न जल हमेशा भरा रहे। विवाह संस्कार के समय पीतल के लोटे में जल भर कर रखा जाता है। जो इस बात का प्रतीक है कि घर में पति पत्नी दोनों मिलकर रहेंगे।
घर को करे पवित्र
पीतल से जुडी परम्पराएँ बच्चे के जन्म के समय पीतल की थाली को पीटने की परंपरा है। जो बताती है कि घर में सौभाग्य आ गया है। एक नया वशंज संसार में जन्म ले चुका है। इसी प्रकार मृत्यु के समय अस्थि विसर्जन के पश्चात पीपल पर जल पीतल के कलश से ही चढ़ाया जाता है। पिंडदान के बाद पीतल के कलश में गंगाजल व सोने का टुकड़ा रखकर पूरे घर को पवित्र किया जाता है। यह सारी रीति रिवाज पीतल की पवित्रता व हमारे घर में पीतल की अनिवार्यता के विषय में बताते हैं। हम सभी को नए का प्रयोग करना चाहिए। पर नए के कारण पुराने को बिना सोचे समझे छोड़ देना कहीं की समझदारी नहीं है।
पीतल के बर्तन में पानी पीने से पानी पौष्टिक, शुद्ध स्वच्छ व शरीर के लिए लाभदायक होता है तो मैं आप सब से यही कहना चाहूंगी कि निकाल लीजिए अपने दादा दादी के जमाने के लोटे और बरतनों को और जगह दे दीजिए एक बार फिर से अपने रसोई घर में।
हमारे घर की रसोई में कई तरह के मसालों का इस्तेमाल किया जाता है। ये मसाले खाने के स्वाद को और बढ़ा देते है जिससे खाना और स्वादिष्ट हो जाता है। ऐसा ही एक मसाला है करी पत्ता। करी पता खाने के स्वाद के साथ साथ सुगंध भी बढ़ाता है। करी पत्ते का इस्तेमाल दक्षिण भारत में ज्यादा किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम मुराया कोएनिजी है। करी पत्ता बहुत ही गुणकारी है। प्राचीन समय में करी पत्ते का इस्तेमाल इसकी सुगंध के कारण किया जाता था। बाद में इसके सेवन से होने वाले फ़ायदों को देखते हुए लोग इसका इस्तेमाल खाने में भी करने लगे। आज इस लेख में हम आपको करी पत्ता के फायदे और नुकसान के बारे में बताएँगे।
करी पत्ता में पाये जाने वाले पोषक तत्व
प्रति 100 ग्राम करी पत्ता में पाये जाने वाले पोषक तत्व हैं कैल्सियम 810 mg
फास्फोरस 600 mg आइरन 3.1 mg
केरोटीन 12600IU विटामिन सी 4 mg
निकोटिनीक एसिड 2.3 mg
करी पत्ता के फायदे-Kari Patta Ke Fayde
दिल के लिए है बेहतर-Kari Patta Ke Fayde In Hindi
करी पत्ता आपके दिल के लिए बहुत ही बेहतर साबित होता है। करी पत्ता में भरपूर मात्रा में एंटी ओक्सीडेंट्स और विटामिन सी पाया जाता है जो शरीर में मौजूद बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करता है और गुड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को बढ़ाता है। इससे आपको दिल से जुड़ी बीमारियाँ होने का खतरा कम हो जाता है और आप स्वस्थ रहते हैं।
बालों की ग्रोथ में करे मदद-Kari Patta For Hair In Hindi
करी पत्ता बालों के लिए भी बहुत अच्छा होता है। ये बालों से जुड़ी कई समस्याओं को दूर करने में आपकी मदद करता है। करी पत्ता से आपके बाल मजबूत होते हैं और बालों की ग्रोथ भी अच्छी होती है। इससे बालों की जड़ें मजबूत हो जाती है। जिससे बालों का झड़ना कम हो जाता है और बाल लंबे हो जाते हैं। अगर आपके बालों में डेंड्रफ की समस्या है तो करी पत्ता इससे भी छुटकारा दिला सकता है। इसके लिए आप करी पत्ता के रस को अपने बालों में लगाएँ। फिर 1 घंटे बाद बालों को धो लें।
डायरिया और कब्ज़ में दे राहत-Kari Patta Ke Fayde
अगर आपको पेट से संबन्धित समस्याएँ जैसे डायरिया या कब्ज़ है तो आप करी पत्ता का सेवन भी कर सकते हैं। करी पत्ता डाइजेस्टीव एंज़ाइम्स को बढ़ाने में मदद करते हें। जिससे खाना अच्छे से पचता है और पेट से जुड़ी समस्याएँ नहीं होती। इसके लिए आप कच्चे करी पत्ता का सेवन भी कर सकते हैं।
कब्ज
फंगल और बेक्टीरियल संक्रमण से बचाए-Curry Leaves Benefits In Hindi
अगर आपको फंगल या बेक्टीरियल संक्रमण हुआ है तो आप करी पत्ता का प्रयोग कर सकते हैं। करी पत्ता में एंटी बेक्टीरियल गुण पाये जाते हैं जो संक्रमण को खत्म करने में मदद करते हैं। इसके लिए आप ताजे करी पत्तों को पीस कर उनका पेस्ट बना लें। अब इसे संक्रमण वाली जगह पर लगा लें।
वज़न घटाने में करे मदद-Kari Patta Ke Fayde In Hindi
अपने बढ़े हुए वज़न को घटाने के लिए आप करी पत्ता का सेवन कर सकते हैं। करी पत्ता में डाइक्लोरोमीथेन और एथिल एसीटेट पाया जाता है। ये आपके बढ़े हुए वजन को कम करने में मदद करता है। जिससे आप फिट और स्वस्थ रहते है।
डायबिटीज़ को करे कंट्रोल-Kari Patta Ke Fayde
करी पत्ता डायबिटीज़ को कंट्रोल करने के लिए भी बहुत लाभकारी साबित होता है। करी पत्ता में एंटी डाइबिटिक प्रॉपर्टीज़ पाई जाती है। जो आपके शरीर में शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करता है और इंसुलिन की मात्रा को बढ़ाने में भी सहायक है।
करी पत्ता के नुकसान
हर चीज़ की अति बुरी होती है। इसलिए करी पत्ता का ज्यादा सेवन करना आपके शरीर के लिए अच्छा नहीं होता।
गर्भवती स्त्री या स्तनपान कराने वाली स्त्रियॉं को डॉक्टर से परामर्श करने के बाद ही इसका सेवन करना चाहिए।
कई लोगों को करी पत्ते से एलर्जी भी हो सकती है। इसलिए अगर आपको एलर्जी है तो आप करी पत्ते का सेवन करने से बचें।
जब भी कोई व्यक्ति सेहत के बारे में सोचना शुरू करता है, उसे सबसे पहली सलाह दी जाती है कि गर्म पानी नींबू और शहद पीना शुरू कर दो। मोटापा घटाना हो या सुंदरता बढ़ाना दोनों के लिए नींबू शहद के गुण गाये जाते है। बहुत से कॉस्मेटिक अपने प्रोडक्ट में इनके होने का दावा करते है। लेकिन जैसा हम हमेशा कहते है हर चीज़ का एक नुकसान होता है। उसी प्रकार निम्बू और शहद के भी कुछ साइड इफ़ेक्ट होते हैं। आज हम उन्ही साइड इफ़ेक्ट के बारे में बात करेंगे। सबसे पहले बात करते है, गर्म पानी नींबू और शहद पीने की और नींबू और शहद के नुकसान की।
अगर आप सोचते है सुबह गर्म पानी नींबू और शहद पीने से आप पतले हो जाएंगे, तो आप बहुत बड़ी गलतफहमी में है।
नींबू के नुकसान-Nimbu Ke Nuksan In Hindi
निम्बू मे सिट्रिक एसिड होता है, जो अगर ज्यादा मात्रा में शरीर मे जाए तो समस्या पैदा कर सकता है। ज्यादा निम्बू के सेवन से शरीर मे डिहाइड्रेशन यानी पानी की कमी हो सकती है। इससे आपको पूरे दिन हलक सूखने की समस्या हो सकती है। गर्म पानी के साथ नींबू का रस लेने से यह डाइयूरेटिक की तरह से कार्य करता है। जरूरत से ज्यादा यूरीनेशन आपको डीहाइड्रेट कर सकता है।
ज्यादा नींबू पानी पीने से दांतों की प्रोटेक्शन लेयर यानी इनेमल को नुकसान पहुंचता है। जिससे दांत बहुत सेंसिटिव हो जाते है। आपको ठंडा गर्म लगने की समस्या हो सकती है।
इसका कारण निम्बू का एसिडिक नेचर है। आप चाहें तो नींबू पानी हमेशा स्ट्रॉ से पीएं, इससे नींबू की अम्लता दांतों को सीधे तौर पर नुकसान नहीं पहुंचाएगी।
नींबू पेप्सिन एंजाइम को एक्टीवेट करता है। यह एंजाइम प्रोटीन्स को तोड़ता है। गले और ईसोफेगस में पेप्सिन के एक्टीवेट होने से ही जलन की समस्या होती है। इसके अलावा एसिडिटी, खट्टी डकार, खराब डाइजेस्टिव सिस्टम, की समस्या होती है।
ज्यादा नींबू पानी पीने से किडनी स्टोन (पथरी) की समस्या भी हो जाती है। इसके अलावा गुर्दे और पित्ताशय की थैली में समस्या आती है।
निम्बू में उपस्थित टायरामाइन नामक तत्व माइग्रेन को बढ़ा सकता है। तो यदि आप माइग्रेन से ग्रस्त है और इसकी की दवा ले रहे हों तो उसके साथ नींबू पानी बिल्कुल न ले।
कई बार मुँह में सफेद रंग के दर्द भरे छाले हो जाते है, जिन्हें केंकर सोर्स कहते है। उसका कारण भी निम्बू का एसिडिक होना माना जाता है।
शहद के नुकसान-Shahad Ke Nuksan
अगर आप शहद से मोटापा कम करने का सोच रहे है तो भूल जाए। शहद बहुत ज्यादा मीठा होता है और इसकी जरूरत से ज्यादा मात्रा मोटापा बढ़ाती है।
शहद
आइए जानते हैं शहद का अधिक सेवन करने से होने वाले नुकसान…
स्माल इंटेस्टाइन में दिक्कत-Shahad Ke Nuksan
अगर आप लगातार शहद का अधिक सेवन कर रहे है तो, स्माल इंटेस्टाइन की न्यूट्रीटीएंट्स को सोखने की कैपेसिटी घट जाएगी। ऐसा शरीर मे फ्रक्टोज नामक तत्व की मात्रा बढ़ने से होता है। इससे शरीर धीरे धीरे कमजोर होने लगेगा।
डायबिटीज का खतरा-Shahad Ke Nuksan
शहद का लंबे समय तक अधिक सेवन करने से शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है। अगर आप डायबिटीक पेशेंट हैं, तो शहद भूल कर भी न खाए। यदि नही तो सीमित मात्रा में सेवन करें।
वोमिट की फील-Shahad Ke Nuksan
अगर आप एक साथ अधिक मात्रा में शहद का सेवन करते हैं, तो इससे आपको उल्टी की फीलिंग हो सकती है। फ़ूड पॉइज़निंग हो सकती है। निम्बू और शहद के साथ मे सेवन करने से ब्लोटिंग सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभरती है।
नींबू लगाने के नुकसान
त्वचा पर लेमन जूस लगाने से आपकी स्किन पर डार्क स्पॉट हो सकते हैं. खासकर यदि आप बाहर निकल रहे हो तो। क्योंकि सूर्य के प्रकाश में संपर्क में आने से सबसे खतरनाक तरह का सनबर्न हो सकता है। इस सनबर्न को Phytophotodermatitis कहते है।
नींबू के जूस में एसिड अधिक मात्रा में होता है। इसकी वजह से हाइपरपिगमेंटशन, इरिटेशन की समस्या होती है और त्वचा अत्यधिक संवेदनशील हो सकती है।
शहद लगाने के नुकसान
शहद स्किन के लिए अच्छा ही होता है और नुकसान न के बराबर होता है। लेकिन बहुत से लोग इससे एलर्जिक होते है। शहद से एलर्जी होने पर चेहरे पर लाल पैच, जलन और सूजन आ जाती है।
अर्जुन का पेड़ एक ऐसा औषधीय पेड़ है जिसके अनगिनत लाभ है। अर्जुन की छाल अंदर से लाल रंग की होती है और पेड़ से उतारने पर चिकनी चादर की तरह उतरती है। अलग अलग प्रान्त में इसे अलग अलग नाम से जाना जाता है जैसे घवल, ककुभ और नदीसर्ज। आयुर्वेद में इस पेड़ के बहुत से लाभ वर्णित हैं, आज हम बात करेंगे अर्जुन की छाल का प्रयोग कैसे करें के बारे में।
छाल में बीटा-सिटोस्टिरोल, इलेजिक एसिड, ट्राईहाइड्रोक्सी ट्राईटरपीन, मोनो कार्बोक्सिलिक एसिड, अर्जुनिक एसिड आदि भी पाए जाते हैं। पेड़ की छाल में पोटैशियम, कैल्शियम, मैगनिशियम के तत्व भी पाए जाते हैं। अर्जुन की छाल की तासीर ठंडी होती है ,यदि सर्दियों में इसका सेवन लहसुन के साथ किया जाए तो ज्यादा फायदेमंद होगा।
अर्जुन की छाल का प्रयोग कैसे करें-How To Use Arjun Ki Chaal
फ्रैक्चर होने पर पानी के साथ करे प्रयोग
ह्रदय को शक्ति देने के लिए दूध के साथ अर्जुन की छाल ली जाती है। यह फ्रैक्चर को ठीक करने में भी लाभकारी होता है। 50 मिली अर्जुन की छाल के पाउडर को पानी में मिलाकर दिन में खाना खाने से पहले एक या दो बार पिये।
एक चम्मच अर्जुन की छाल के पाउडर को 2 कप पानी में डालकर उबालें और आधा कप रह जाने पर छान कर गुनगुना पी लें। आप दूध के साथ अर्जुन की छाल को ले सकते हैं और इसके अर्क से बने कैप्सूल भी ले सकते हैं।
हाई ब्लड प्रेशर में दूध के साथ करे सेवन
तीन ग्राम चूर्ण की मात्रा सुबह-शाम दूध के साथ लेने से हाई ब्लड प्रेशर की समस्या में आराम मिलता है। चायपत्ती की बजाय इसकी छाल को पानी में उबालकर उसमें दूध व चीनी डालकर पीना हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर व कोलेस्ट्रॉल में फायदेमंद है।
वजन कम करना है तो पियें काढ़ा
अर्जुन की छाल में हाइपोलिपिडेमिक पाया जाता है, जो कोलेस्ट्रॉल को कम अथवा नियंत्रित करता है। वजन कम करने में अर्जुन की छाल गुणकारी है। इसके लिए आप रोजाना सुबह और शाम के वक्त अपनी शारीरिक क्षमता अनुसार अर्जुन की छाल का काढ़ा पी सकते हैं। आपको जल्द असर देखने को मिल सकता है।
अर्जुन की छाल डायबिटीज़ रोग को भी नियंत्रित करती है। इसके लिए रोजाना रात में सोने से पहले आधा चम्मच अर्जुन की छाल पाउडर गुनगुने गर्म पानी में मिलाकर पिएं। इससे आपको बहुत जल्द डायबिटीज़ में आराम देखने को मिल सकता है।
अर्जुन की छाल का पेस्ट बढ़ाये आपकी सुन्दरता
अर्जुन की छाल सेहत और सुंदरता दोनों के लिए गुणकारी है। अगर आप त्वचा की खूबसूरती को बरकरार रखना चाहते हैं, तो अर्जुन की छाल का पाउडर और कपूर को मिलाकर अपने चेहरे पर लगाएं। इसके बाद जब पेस्ट सूख जाए, तो अपने चेहरे को साफ पानी की मदद से धो लें।
पेट दर्द होने पर साथ में लें हींग
पेट दर्द की शिकायत होने पर अर्जुन की छाल का प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए छाल में भुना हुआ हींग और काला नमक मिला कर दिन में दो बार इसका सेवन करना चाहिए।
एक कप पानी में तीन ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें। पानी की मात्रा आधी रहने पर इसे सुबह-शाम गुनगुना पी लें। इससे बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल कम होता है।
अर्जुन की छाल के अन्य प्रयोग
अर्जुन की छाल में कसुआरिनिन (Casuarinin) नाम का एक तत्व मौजूद होता है जो स्तन कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने के लिए बहुत प्रभावी है।
नारियल के तेल में इसकी छाल के चूर्ण को मिलाकर मुँह के छालों पर लगाने से मुख के छाले ठीक हो जाते हैं।
अर्जुन की छाल के चूर्ण को गुड के साथ लेने से बुखार में काफ़ी आराम मिलता है।
अर्जुन की छाल के काढ़े को यूरिन इन्फेक्शन में प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, यह गुर्दे या मूत्राशय की पथरी को निकालने में भी मदद करती है।
इसका काढ़ा बना कर पीने से ब्लीडिंग डिसऑर्डर की समस्या दूर होती है।
हड्डी टूटने, नील पड़ जाने, या अंदुरनी चोट लगने पर भी इसके काढ़े का सेवन तथा चोट पर लेप का इस्तेमाल लाभदायक है।
पीरियड के दौरान हैवी ब्लीडिंग में इसका काढ़ा तथा कान के दर्द में इसका एक बूंद रस लाभदायक है।
बारिश के मौसम के साथ ही ढेरो बीमारियां फैल जाती है। उन्ही में से एक खतरनाक बीमारी होती है डेंगू, डेंगू जो शुरू में एक सामान्य बुखार की तरह लगता है, लेकिन स्थिति बिगड़ने पर जानलेवा हो सकता है। डेंगू बुखार के लक्षण व उपचार की जानकारी के अभाव में मरीज की जान भी जा सकती है। डेंगू बुखार मादा एडीज एजिप्टी मच्छरों के काटने से होता है। जुलाई से अक्टूबर में मच्छरों के पनपने के लिए अनुकूल वातावरण होता है। इसलिए इन महीनों में बहुत ही ध्यान देने की जरूरत होती है।
इन मच्छरों के शरीर पर काली सफेद रंग की धारिया होती है। डेंगू से पीड़ित किसी इंसान को जब ये मच्छर काटता है तो खून के साथ ये वायरस भी मच्छर के शरीर मे चला जाता है। जब यहीं मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो उसे भी डेंगू हो जाता है।
डेंगू के लक्षण
ये तीन तरह का होता है, और उसी के आधार डेंगू के लक्षण होते है।
साधारण डेंगू के लक्षण
दिन से लेकर एक हफ्ते तक व्यक्ति बुखार से पीड़ित रहता है।
बुखार हो जाता है।
बहुत तेज ठंड महसूस होती है।
सरदर्द
आँखों मे दर्द होता है जो आंखों को हिलाने पर बढ़ जाता है।
मसल्स और जॉइंटस में दर्द होता है।
कमजोरी लगती हैं,
मुँह में कड़वापन,गले मे भी दर्द होता है।
फेस, गर्दन,और छाती पर रैशेस हो जाते है।
डेंगू हैमरेजिक बुखार के लक्षण
नाक, मुँह और मसूड़ों से खून आने की समस्या हो सकती है।
मरीज को हर समय गला सूखा महसूस होता है और प्यास लगती हैं,
स्किन पर घाव हो जाते है,
त्वचा बहुत ठंडी महसूस होती है,मरीज बेचैनी में कराहता रहता है,
सांस लेने में तकलीफ भी हो सकती हैं,
डेंगू हैमरेजिक बुखार
डेंगू शॉक सिंड्रोम के लक्षण
नाम से पता चल रहा कि मरीज शॉक में आ जाता है।
ब्लड प्रेशर गिर जाता है।
तेज बुखार महसूस होता है पर शरीर ठंडा रहता है।
मरीज का होश खोना आदि लक्षण होते है,नब्ज तेज चलने लगती है।
डेंगू बुखार से बचाव के उपाय
डेंगू से बचाव करने का सबसे सरल और जगजाहिर उपाय है, कि पानी को एक जगह इक्कठा न होने दे। पानी चाहे गंदा हो या साफ़
क्योंकि डेंगू का मच्छर रुके हुए पानी मे पनपता है,ये कुछ निम्न उपाय है जो हम अपना सकते हैं।
कूलर का पानी बदलते रहे।
पूरी बाजू के कपड़े पहने।
अगर आपकी छत या आँगन में कही भी कोई टायर, डब्बा, फालतू बाल्टी, घड़ा, बोतल जैसा कोई भी बर्तन रखा हो जिसमें पानी इक्कठा होता हो उसे तुरंत हटा दे।
पानी मे क्लोरीन का प्रयोग, डी डी टी का छिड़काव भी मददगार होता है।
इम्युनिटी बढ़ाने पर जोर दे।
फल और सब्जियों को भली प्रकार धोकर ही उपयोग करे
खुले में शौच ना करे,जंक फूड ना खाएं
डस्टबीन में गीला सूखा कचरा अलग रखें, और ढक कर रखे।
डेंगू से बचने के घरेलू उपाय
डेंगू में गिलोय का प्रयोग
डेंगू में गिलोय का प्रयोग, अब डेंगू के लिए संजीवनी बूटी की तरह प्रसिद्ध हो चुका है। यह डाइजेस्टिव सिस्टम को सही रखकर इम्युनिटी को स्ट्रांग बनाता है।
कैसे ले
डेंगू बुखार में आप गिलोय की डंडी को पानी में उबालें, पानी के आधा रह जाने पर छान लें और एक हर्बल ड्रिंक के रूप में उपयोग करें। इस पेय में कुछ तुलसी के पत्ते भी मिला सकते हैं।
तुलसी
तुलसी का प्रयोग न केवल इम्युनिटी बढ़ाता है बल्कि किसी भी तरह के संक्रमण को भी दूर करता है। इसके लिए आपको कुछ मेहनत भी नही करनी होगी।
कैसे ले
सुबह कभी भी तुलसी के पत्ते ले और पानी से निगल ले। आप तुलसी के पत्तो को साबुत दालचीनी और काली मिर्च के साथ उबाल कर काढ़ा भी बना सकते है।
मेथी
मेथी के पत्ते डेंगू से होने वाले दर्द में आराम देता है। बेचैनी से मरीज को नींद नही आती उसमें भी मेथी के पत्ते फायदेमंद है और नींद लाने में मदद करते है।
कैसे ले
मेथी के पत्तो का साग, आटे में मिलाकर रोटी या मेथी दाने का भिगोकर प्रयोग करें। रात को मेथी दाना भिगो दें और सुबह पानी से निगल ले।
डेंगू में कौन सा फल खाना चाहिए
क्या डेंगू में संतरे अच्छे होते हैं?
संतरे में मौजूद होते है,एन्टीऑक्सीडेंट जो कि किसी भी प्रकार के बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण में प्रभावी है। साथ ही इसमे होता है विटामिन सी जो इम्युनिटी को बढ़ाता है।
कोलेजन के निर्माण में विटामिन सी की महत्वपूर्ण भूमिका के कारण यह सेलुलर मरम्मत को उत्तेजित करता है।
संतरा
कैसे ले
जूस की बजाय संतरे को खाएं, क्योंकि जूस की जगह संतरे का फाइबर ज्यादा उपयोगी है। शाम के बाद संतरे का सेवन न करें। यदि खांसी है तो संतरा न खाएं।
पपीते के पत्ते
पपीते के पत्ते में न्यूट्रिशनल एलिमेंट और आर्गेनिक एलिमेंट्स की जुगलबंदी प्लेटलेट नंबर्स बढ़ाती है। साथ ही इसमे मौजूद एंटीऑक्सिडेंट ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने और रक्त में अधिक विषाक्त पदार्थों को खत्म करने में सहायता करता है।
कैसे ले
पपीते के पत्तो को तुलसी या गिलोय के साथ उबालकर इस्तेमाल कर सकते है। साथ ही पपीते के पत्ते का रस निचोड़कर भी सेवन कर सकते है।
पपीते के फल को भी डाइट का हिस्सा बनाए खासकर सुबह के समय जरूर खाए।
जौं
जौ घास ब्लड प्लेटलेट्स को बढ़ाती है। इसलिए इसका सेवन बहुत लाभदायक होता है।
कैसे ले
जौ घास से बना काढ़ा पिएँ या इसे सीधे ही खा सकते है। जौं का सत्तू या रोटी के आटे में मिलाकर प्रयोग करे।
क्या डेंगू बुखार में नारियल पानी पी सकते हैं?
खूब नारियल पानी पिएँ। इसमें मौजूद जरूरी पोषक तत्व जैसे मिनरल्स और इलेक्ट्रोलाइट्स (electrolytes) शरीर को मजबूत बनाते हैं।
कैसे ले
नारियल पानी का सेवन तेज बुखार में न करे। शाम 4 बजे के बाद भी नारियल पानी न पीएं।
इनके अलावा कद्दू (पके हुए कद्दू को पीस कर उसमें एक चम्मच शहद डालकर पिएँ) चुकंदर, एलोवेरा का सेवन भी डेंगू और उसके लक्षणों में आराम देता है।
डेंगू में अक्सर डिहाइड्रेशन हो जाता है, इसलिए नारियल पानी बेहद फायदेमंद हैं ,हाइड्रेशन के साथ साथ इससे इलेक्ट्रॉलाइट्स की कमी पूरी होती है और प्लेटलेट्स काउंट बढ़ता हैं। प्लेटलेट्स की कमी का एक बड़ा कारण शरीर में लिक्विड की कमी भी होता है। नारियल पानी में मौजूद खनिज तत्व जैसे सोडियम और पोटैशियम आदि शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स का संतुलन बनाए रखते हैं और प्लेटलेट्स काउंटस भी बढ़ाते हैं। इसलिए मरीज को एक दिन में तीन बार नारियल पानी दे सकते हैं।
संतरा एंटीऑक्सीडेंट, फाइबर और विटामिन-सी जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसलिए डेंगू के मरीजो़ के लिए संतरे को अच्छा माना जाता है। इसमें भरपूर फाइबर होने से कब्ज़ की समस्या नहीं होती, रसदार होने से डिहाइड्रेशन दूर करता है, पोषक तत्वों से शरीर की कमजोरी दूर होती है। संतरा खाने का अगर रोगी का मन ना हो तो संतरे का जूस भी अच्छा विकल्प है। मुँह का स्वाद अच्छा हो इसके लिए हल्के से काले नमक के साथ भी जूस ले सकते हैं।
बुखार में शरीर का तापमान बढा़ रहता है इसलिए चावल, बहुत ज्यादा खट्टी या ठंडी चीजों को एवोइड़ करनें की सलाह दी जाती है, लेकिन रोटी आप खा सकते हैं। डेंगू बुखार में जितना हो सके हल्का भोजन ही खाना चाहिए, जैसे दाल, दलिया, खिचड़ी और तरल पदार्थ। क्योंकि बुखार में मुँह का स्वाद काफी खराब हो जाता है इसलिए स्वाद बदलने के लिए पतली दाल के साथ रोटी खा सकते हैं।
बुखार होने पर हल्के आहार का ही चुनाव करना चाहिए जो पचने में आसान हो, अक्सर बुखार में चावल और ठंडी चीजों से परहेज़ की सलाह दी जाती है लेकिन चावल की खिचड़ी खाना अच्छा माना जाता है। एक्सपर्ट भी यही कहते हैं कि डेंगू बुखार होने पर हल्का-फुल्का भोजन लेना चाहिए। लंच में आप थोड़ा चावल भी ले सकते हैं। ध्यान रखें कि शाम के वक्त चावल बिल्कुल न खाएं। चावल में कुछ ऐसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो डेंगू में होने वाली शारीरिक कमजोरी को दूर करते हैं ।
डेंगू के मरीजों के लिए गिलोय बेहद फायदेमंद होता है। यह शरीर के इम्युन सिस्टम को मजबूत करता है, जिससे इंफेक्शन होने का खतरा कम हो जाता है। इसके पत्ते का जूस पीने से प्लेटलेट्स काउंट भी तेजी से बढ़ता है। गिलॉय के पत्तों का काढा़ अगर नियमित रूप से पीते हैं तो डेंगू बुखार होने की संभावना कम हो जाती है, गिलोय की बेल के 10 छोटे छोटे टुकड़े तोड़कर उसे 2 लीटर पानी में थोड़ा सा अदरक और दो चुटकी अजवाइन के साथ सात मिनट तक उबालकर, थोड़ा ठंडा करके, रोगी को खाली पेट पीने को दें तो बेहद लाभ मिलता है।
डेंगू के रोगियों को आहार में हाई प्रोटीन और आयरन से भरपूर डाइट को शामिल करने की सलाह दी जाती है। अंडे में प्रोटीन आयरन और कईं तरह के पोषक तत्व होते हैं। इसलिए डेंगू मरीज को अंडा खाने को दे सकते है। बस ध्यान रखें कि कैसे देना है * उबले हुए अंडे खाने को दें और अंडे का पीला हिस्सा हटाकर खाएं।अंडे का यह हिस्सा नुकसान पहुंचा सकता है। *अंडे को फ्राई करके खाना बिल्कुल एवोइड करें इससे उसमें फैट की मात्रा बढ़ जायेगी जो पचनें में मुश्किल करेगी। *और ध्यान रखें कि अधपके अंडे ना खायें इससे शरीर में इंफैक्शन का खतरा रहता है।
फीवर के दौरान पैरों के दर्द की शिकायत अक्सर होती हैं- डॉक्टर बताते हैं कि दो तरह के पेन सामने आते हैं, क्यूट रिएक्टिव आर्थराइटिस और क्रॉनिक जाइंट पेन। रिसर्च से ये भी पता चला है कि मांसपेशियों और जोड़ों में अधिक समय तक दर्द रहने के लक्षण एक ऑटो इम्यून स्थिति भी हो सकती है। अगर ऐसा है तो सामान्य व्यायाम और पैरासिटामोल के द्वारा इसमें आराम मिल जायेगा, लेकिन जब अधिक समय तक आराम न मिले तो फिजियोथेरेपी का सहारा लिया जा सकता है। इसके अलावा घर पर नियमित तेल मालिश भी की जा सकती है, जिससे आराम मिलेगा। मालिश के लिए नारियल, तिल और सरसो का तेल अच्छा रहेगा।
डेंगू के इलाज को लेकर कुछ लोगों का यह मानना है की डेंगू के दौरान प्लेटलेट्स की संख्या में कमी आने पर इलायची के सेवन से प्लेटलेट की संख्या बढ़ जाती है ,आइए जानते हैं ,क्या ऐसा होता है?डॉक्टर्स की माने तो इलायची के सेवन से प्लेटलेट्स की संख्या में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं होती है । इलायची पाचन शक्ति को सुधारने और मरीज के मुंह का स्वाद ठीक करने के काम में आती है ।डेंगू के दौरान मरीज के शरीर में होने वाली गर्मी से भी इलायची का सेवन फायदा पहुंचाता है परंतु इसके सेवन से प्लेटलेट्स काउंट नहीं बढ़ता है ।
सिरदर्द एक ऐसी दिक्कत है जो आजकल बच्चो से लेकर बूढ़े लोगो तक मे देखी जाती है। सिर दर्द को बहुत ही साधारण तरीक़े से समझा और माना जाता रहा है। यूं तो सिरदर्द, माथे में, कनपटी में, पूरे सिर में कहीं भी हो सकता है। पर आज इस आर्टिकल में हम सिर के पीछे दर्द की बात करेंगे।
सिरदर्द, नींद न पूरी होने से, आंखे कमजोर होने या गलत नम्बर का चश्मा पहनने अथवा तेज शोर में रहने से भी हो सकता है। यही सिर दर्द कभी कभी बहुत गम्भीर बिमारीयो को सूचक होता है। लगातार पेन किलर्स के सहारे इसे नजरंदाज करना खतरनाक हो सकता है।
सिरदर्द, सिर के किस हिस्से में हो रहा है, ये बात बहुत ही ज्यादा मायने रखती है। क्योंकि हर प्रकार की बीमारी या समस्या का सिरदर्द अलग अलग हिस्से में हो सकता है।
सिर के पिछले हिस्से में दर्द दरअसल, शुरुआत में कान के आसपास से शुरू होता हुआ फैलता है।
सिर के पिछले हिस्से में होने वाले दर्द के कारण
ऑक्सीपिटल नेयुरेल्जिया(occipital neuralgia)
ये दर्द, सिर के occipitial हिस्से अर्थात occipital नर्व्स से सम्बंधित है। occipital नर्व्स में होने वाला ये दर्द बहुत ही भयंकर होता है। ये दर्द हूल की तरह उठता है।
सिर के पिछले हिस्से से फैलता हुआ आंखों तक महसूस होने लगता है।
उपाय
इसका उपाय केवल न्यूरोलॉजिस्ट से उचित सलाह व फिजियोथेरेपी ट्रीटमेंट लेना है।
क्लस्टर सिरदर्द
क्लस्टर सिरदर्द दरअसल माइग्रेन से अलग होता है। इसका पैटर्न बहुत ही अजीब होता है। कई बार ये दिन में लगातार बना रहता है, और कई बार दिन के किसी विशेष समय पर होता है।
ये पूरे महीने में कुछ समय के अंतराल पर हो सकता है या फिर कई महीनों बाद अचानक अटैक आ सकता है।
ये दर्द सिर के किसी एक हिस्से में या फिर एक आंख के आसपास के हिस्से में इतना तेज, चुभने वाला दर्द होता है कि व्यक्ति नींद से भी जाग जाता है। ज्यादातर ये दर्द कनपटी और ललाट में होता है पर सिर के पिछले ग हिस्से में भी ये दर्द भयानक रूप से होता है।
बहुत ज्यादा गर्मी या गर्म वातावरण में ज्यादा व्यायाम करने से बचें
तनाव या वर्कलोड से होने वाला सरदर्द
इस समय तनाव या वर्कलोड से होने वाला सरदर्द सबसे आम है, वर्किंग लोग घण्टो वर्क लोड के , बुक्स लिए, मोबाइल लिए, गर्दन झुकाए बैठे रहते है। और नतीजा होता है सिर के पीछे होने वाला सिरदर्द। ये सिरदर्द दरअसल गर्दन और कंधों पर पड़ने वाले प्रेशर का नतीजा होता है।
तनाव
उपाय
समय-समय पर आराम करते रहें
अपने डेस्क, कुर्सी औऱ कंप्यूटर को ठीक तरीके से व्यवस्थित करें
फोन पर बात करने की गलत मुद्रा से बचें
दिन में कई बार, 30 मिनट तक दर्द वाली जगह पर बारी-बारी बर्फ़ रखने और गर्म सिकाई करने, स्ट्रेचिंग करें
योगा, मैडिटेशन करें।
साइनसाइटिस
मैक्सिलरी साइनस दरअसल खोपड़ी में एक कैविटी यानी खाली जगह होती है। जब इसमे प्रदूषण, एलर्जी, अस्थमा या नाक की हड्डी बढ़ने के कारण सूजन आ जाती है तो सांस लेने के लिए अत्यधिक जोर लगाना पड़ता है। सांस लेने की यह अवस्था भारी सिरदर्द पैदा करती है, इस दर्द का अनुभव आप सिर के पीछे, माथे, गाल की हड्डियों और नाक के आस-पास महसूस कर सकते हैं।
उपाय
डॉक्टर से सलाह लें
वर्टिब्रल आर्टरी डाईसेक्शन
वर्टिब्रल आर्टरी गर्दन कि मुख्य आर्टरी होती है। जब इस आर्टरी पर किसी भी तरह को कोई दबाव पड़ता है तो भयंकर दर्द का अहसास होता है।
ये दर्द सर के पिछले हिस्से से होता हुआ जबड़ो तक आता है।
उपाय
डॉक्टर से सलाह ले।
लिम्फ नोड की सूजन
कान के पीछे के लिम्फ नोड होते है जोकि कभी कभी सूज जाते है। खोपड़ी, कान, आंख, नाक और गले के संक्रमण से लिम्फ नोड में सूजन आ सकती है। कारण हो सकते हैं. इस तरह के दर्द भी काफी कष्टदायक साबित होते हैं.
उपाय
डॉक्टर से सलाह ले।
इसके अलावा सिर के पीछे दर्द होने के कुछ अन्य कारण है
आयुर्वेद के अनुसार सभी रोगों का मुख्य कारण वात, पित्त और कफ दोष होता है। अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु और आकाश इन सभी तत्वों से मिलकर शरीर का निर्माण हुआ है। यदि इन सभी तत्वों के बीच असंतुलन होता है तो व्यक्ति रोगी हो सकता है। इनका असंतुलन ही वात, पित्त, कफ दोषों को जन्म देता है। आजकल की जीवनचर्या के कारण वातरोग बहुत ही सामान्य है। आज इस आर्टिकल में हम आपको वात रोग की पहचान बताएंगे।
इस आर्टिकल को पढ़कर आप जान सकेंगे कि आप कहीं वातरोग से पीड़ित तो नही।
वातरोग या वायु विकार के प्रकार
वातरोग या वायु विकार को निम्न भागो में बांटा गया है।
उदान वायु
उदान वायु कंठ में वास करती है,जैसे डकार आना। इस प्रकार में सांस लेने और बोलने में समस्या होती है। चेहरे फीका लगता है, और खांसी जैसी समस्या शामिल है
अपान वायु
बड़ी आंत से मलाशय तक, वात रोग के इस प्रकार में बड़ी आंत और किडनी से जुड़ी समस्याएं होती है।
प्राण वायु
प्राण ह्रदय के ऊपरी भाग मे, इस प्रकार में नर्वस सिस्टम और ब्रेन प्रभावित होता है।
व्यान वायु
पूरे शरीर में फैली है, वात रोग के इस प्रकार में बाल झड़ने की समस्या होती है।
समान वायु
समान वायु का स्थान अमाशय और बड़ी आंत में होता है। इस प्रकार में रोगी को निगलने में तकलीफ, आंतों से संबंधित समस्या और पोषक तत्वों के अवशोषण में परेशानी जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है
आयुर्वेद के अनुसार वात का मुख्य कार्य रेस्पिरेटरी सिस्टम, हार्ट बीट्स, मसल्स एक्टिविटी, और टिश्यू के कार्यों को संतुलित रखना है।
वात रोग के कारण
वात रोग क्यों होता है। वात रोग होने के निम्न कारण हो सकते है।
गलत लाइफस्टाइल
असंतुलित भोजन
कैसे करें वात रोग की पहचान-Vaat Rog Ke Lakshan
वात रोग होने पर निम्न लक्षण दिखते है।
लगातार शरीर का कमजोर होना।
चेहरे पर झुर्रिया आकर चेहरे की चमक गायब होना। दुबला शरीर होना।
छोटी, धंसी हुई और सूखी आंखों के साथ उनमें काली और भूरी रंग की धारियों का दिखना।सूखे और फटे होंठ।
पतले मसूड़े और दांतों की बिगड़ी हुई स्थिति।त्वचा का रूखा, सूखा और बेजान नजर आना।
डायजेस्टिव सिस्टम खराब होकर लगातार गैस या अपच रहना।
बहुत ज्यादा भावुक होना, जल्दी रोना या गुस्सा आना
बहुत जल्दी में निर्णय ले लेना, तारीफ सुनते ही सामने वाले के वश में हो जाना।
बार बार प्यास लगना, पानी पीने पर भी होंठ और त्वचा ज्यादातर सूखी रहना।
मौसम के प्रति बहुत ज्यादा सेंसिटिव होना, गर्मी,सर्दी बर्दाश्त न कर पाना और खास तौर से रात के वक्त जोड़ा, पिंडलियों या शरीर के अन्य हिस्सों में दर्द बना रहता है।
दिमाग मे हमेशा बेचैनी रहना, घबराहट होना, सांस जल्दी फूलना, उम्र से बड़ा दिखना, नकारात्मक कल्पनाएं करना।
पैर के जोड़ों और हड्डियों में यूरिक एसिड अधिक मात्रा में जमा हो जाने के कारण जोड़ों, घुटनों, पैरों और मांसपेशियों में सूजन हो जाती है जिसके कारण व्यक्ति को उठने बैठने में काफी तकलीफ होती है और दर्द का भी अनुभव होता है।
वात रोग का नियंत्रण और उपचार
सुबह धूप में बैठे
सुबह धूप में बैठने से अर्थ यह नही की आप बेसमय और बेमौसम धूप में बैठे। गर्मियों में सुबह 6 से 7 और सर्दियों में सुबह 9 से 10 तक का समय सही है। गर्मियों में लू लगने का डर रहता है इसलिए तेज धूप में न बैठे।
सुबह धूप में बैठे
तांबे के बर्तन का पानी
रात भर तांबे के बर्तन में पानी रखे, सुबह उठकर इस पानी का सेवन करें। तांबे को शरीर की अशुद्धियों को दूर करने में सहायक माना जाता है।
यह पाचन सिस्टम को दुरुस्त कर चेहरे पर चमक लाता है। वात रोग को दूर करने में मदद मिलती है।
दालचीनी
वात रोग की पहचान होने पर दालचीनी को किसी भी रूप में प्रयोग किया जा सकता है। ये वातरोग के लिए बहुत फायदेमंद है। इसे चाय के रूप में या काढ़े के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
दालचीनी को अदरक और हल्दी के साथ काढ़े के रूप में बनाये, ये दोगुना फायदा करेगी।
लहसुन
यह खाने के अवशोषण में मदद करने के साथ पाचन को मजबूत करने में भी सहायता करता है। वहीं यह वात के प्रभाव को बढ़ाकर वात, पित्त और कफ के बीच के संतुलन को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।
लहसुन की एक कली को सुबह पानी से निगल ले। या गाय के घी में लहसुन का छोक लगाकर दाल में डालकर सेवन करें।
गोल्डन मिल्क यानी हल्दी का दूध
गर्म दूध के साथ हल्दी का सेवन वात दोष से संबंधित कई विकारों से बचा सकता है। दूध को गर्म करके उसमें एक चुटकी हल्दी डालकर उबाल लें। इसमें बिना मीठा डाले इसका सेवन करें।
इन बातों का रखे खास ध्यान
सोने जागने और खाने का सही शेड्यूल बनाए।
भोजन के स्वाद से ज्यादा पौष्टिकता पर ध्यान दे।
खाने में ठंडी तासीर वाली चीजों का सेवन नियंत्रित रूप से करें।
Frequently Asked Questions in Hindi – सामान्य प्रश्न
वात रोग में कौन कौन से रोग होते हैं?
चरकसंंहिता के अनुसार शरीर में वायु बिगड़ जाने पर अस्सी प्रकार के रोग होते हैं जिनमें से जो आमतौर पर देखने में आते हैं वे निम्नलिखित हैं -- नाखूनों का टूटना, पैरों का सुन्न होना, पैर की पिंडलियों में ऐंठन जैसा दर्द, सियाटिका का दर्द,पेट की गैस ऊपर की ओर आना, उल्टी होना, दिल बैठने जैसा महसूस होना, ह्रदय गति में रुकावट का अनुभव, हार्ट बीट बढ़ना, छाती में सुई चुभने जैसी पीड़ा,भुजा से अंगुली तक मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन व जकडऩ। हाथ ऊपर न उठना। गर्दन के पीछे लघु मस्तिष्क के नीचे के हिस्से में जकडऩ व पीड़ा, होंठों में दर्द, दांतों में पीड़ा,सिरदर्द, मुँह का लकवा, कंपकंपी होना, हिचकी, नींद न आना, चित्त स्थिर न रहना।
वात रोग कितने प्रकार के होते हैं?
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में पाँच प्रकार की वायु होती हैं, शरीर में इनके निवास स्थान और अलग कामों के आधार पर इनके नाम है.. प्राण उदान समान व्यान अपान ये पांचों प्रकार की वायु में से कोई भी शरीर में असंतुलित हो जाये तो शरीर के उस हिस्से में रोग हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार सिर्फ वात के प्रकोप से कुल 80 प्रकार के रोग होते हैं।
वात पित्त कफ कैसे पहचाने?
लक्षणों के आधार पर हम वात पित्त कफ़ को पहचान सकते हैं, जैसे.. *वात प्रकृति वाले लोगों के शरीर में रूखापन, दुबलापन, नींद की कमी, निर्णय लेने में जल्दबाजी, जल्दी क्रोधित होना व चिढ़ना, जल्दी डर जाना व अस्थिरता पाई जाती हैं। *पित्त प्रकृति के लोगों में गर्मी बर्दाश्त ना कर पाना, त्वचा पर भूरे धब्बे, बालों का जल्दी सफ़ेद होना, मांसपेशियों और हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन, पसीना, शरीर के अंगों से तेज बदबू आना सामान्य लक्षण है। *कफ प्रकृति वाले लोगों की चाल स्थिर और गंभीर होती है। भूख, प्यास और गर्मी कम लगना, पसीना कम आना, शरीर में वीर्य की अधिकता, जोड़ों में मजबूती, और गठीला शरीर होता है, कफ प्रकृति वाले लोग सुन्दर, खुशमिजाज, कोमल और गोरे रंग के होते हैं।
वात रोग को कैसे खत्म करें?
वात रोग दूर करने के लिए सबसे पहले आहार पर ध्यान दें, जो चीजें बादी करती हैं जैसे बैंगन, उड़द की दाल, फूलगोभी, उनका प्रयोग खानें में न करें, आहार में दूध (पनीर, मावा, मिठाई) व उससे बनी हुई चीजें, घी, गुड़, लहसुन, प्याज, हींग, अजवाइन, मेथी, सरसों व तिल का तेल से वात कम होता है। इसके अलावा अपनी जीवन शैली पर ध्यान दे क्योंकि वात रोग में शरीर में रूखापन रहता है इसलिए तेल की नियमित मालिश भी लाभदायी है। त्रिफला मात्र एक ऐसी औषधि है जो शरीर में वात पित्त कफ़ तीनो का संतुलन बनाता है ,इसलिए नियमित त्रिफला का सेवन करना अत्यंत लाभदायक होता है।