कोरोना महामारी का डर अभी लोगों के मन से निकला नहीं कि केरल में वेस्ट नाइल वायरस से लोग डरने लगे हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए भी यह चिंता का विषय बन गया है. केरल के त्रिशूर में एक 47 वर्षीय व्यक्ति ने कथित तौर पर पिछले हफ्ते वेस्ट नाइल बुखार से दम तोड़ दिया। राज्य में वाइरस जनित बीमारी से यह दूसरी मौत बताई जा रही है, इससे पहले का मामला 2019 का था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, वेस्ट नाइल का पहला मामला 1937 में सामने आया था. तब युगांडा की रहने वाली एक महिला इससे संक्रमित हुई थी। 1953 में उत्तरी मिस्र के नाइल डेल्टा रीजन में पक्षियों में इस वायरस की पहचान हुई थी. तब कौओं और कबूतरों में ये वायरस मिला था।
1997 से पहले तक इस वायरस को पक्षियों के लिए ज्यादा खतरनाक नहीं माना जाता था, लेकिन इसके बाद इजरायल में इस वायरस का एक खतरनाक स्ट्रेन सामने आया था, जिससे कई पक्षियों की मौत हो गई थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 50 साल में कई देशों में इस वायरस से इंसानों के संक्रमित होने के मामले सामने आ चुके हैं।
आखिर नाइल बुखार है क्या ?
वेस्ट नाइल फीवर एक मच्छर जनित बीमारी है, जो वेस्ट नाइल वायरस के कारण होती है, यह एक सिंगल-स्ट्रैंडेड आरएनए वायरस है. यह संक्रमण क्यूलेक्स मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलता है,ये मच्छर संक्रमित पक्षियों से वायरस का प्रसार करते हैं, क्यूलेक्स मच्छर पूरे देश में उत्तर और दक्षिण भारत दोनों में पाए जाते हैं, इंसानों के अलावा, घोड़े और अन्य स्तनधारी भी संक्रमित हो सकते हैं, वेस्ट नाइल वायरस संक्रमित मनुष्यों या जानवरों के संपर्क में आने से नहीं फैलता. यह मुख्य रूप से संक्रमित मच्छरों के काटने से फैलता है।
वेस्ट नाइल बुखार के लक्षण
वायरस से संक्रमित लगभग 80% लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखता, जबकि लगभग 20% संक्रमित लोगों को बुखार हो जाता है. कई बार व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि वह संक्रमित हो गया है. रोग के लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, थकान, शरीर में दर्द, मतली, दाने और कभी-कभी गले में सूजन शामिल हैं. इसमें यह भी कहा गया है कि 60 वर्ष से अधिक आयु के संक्रमित व्यक्ति को ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है, इसे उनका मस्तिष्क प्रभावित हो सकता है, इससे आगे चलकर इंसेफेलाइटिस या मेनिन्जाइटिस जैसे जानलेवा संक्रमण भी हो सकते हैं।
रोग की रोकथाम कैसे करें..?
मच्छरों को नियंत्रित करना और मच्छरों के काटने से खुद को बचाना ही बीमारी को रोकने का एकमात्र तरीका है । पूरे कपड़े पहनें, अच्छी तरह से शरीर को ढकें क्योंकि यह संक्रमित मच्छरों के संपर्क में आने में बाधा का काम करेगा। पानी के स्टोरेज कंटेनरों को कवर करना चाहिए और पानी को जमा नहीं होने देना चाहिए. पूल, यार्ड और बगीचों में कचरों की ढंग से सफाई होनी चाहिए।
केरल में इसका एक मामला सामने आने पर, केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने भी यही एडवाइजरी जारी की है कि मच्छरों को पैदा होने से रोकें , हर किसी को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी और अपने आसपास सफाई रखनी होगी, ड्रेनेज और जमे हुए पानी को साफ करना होगा।
इसके अलावा.. एनिमल-टू-ह्यूमन ट्रांसमिशन को रोकने के लिए जरूरी है कि बीमार जानवरों का इलाज करते समय ग्लव्स या प्रोटेक्टिव कपड़े पहनकर रखें।
और अगर कहीं ये वायरस फैल रहा है, तो वहांँ ऑर्गन ट्रांसप्लांट करने से पहले लैब में उसकी जांच कर ली जाए।
वेस्ट नाइल फीवर का इलाज
सामान्य बुखार की तरह ही इसका इलाज़ किया जाता है, गंभीर मामलों में, उपचार में मुख्य रूप से अस्पताल में भर्ती करते हैं, तरल पदार्थ देते हैं, सांस से जुड़ी सहायता और संक्रमण फिर से ना हो इसके लिए रोकथाम शामिल है. इंसानों के लिए इस बीमारी के खिलाफ वर्तमान में कोई टीका उपलब्ध नहीं है।